बूरा जब वक़्त आता है, सहारे छूट जाते हैं।
जो हमदम बनते थे हरदम, वो सारे छूट जातेहै।
बड़ा दावा करें हम तैरने का जो समंदर से,
फ़सेँ जब हम भँवर में तो, किनारे छूट जाते है।
जो चंदा को ग्रहण लग जाये, सूरज साथ छोडे तो,
वो ज़गमग आसमाँ के भी सितारे छूट जाते है।
जिन्हें पैदा किया, पाला, बडे ही चाव से हमने।
जवानी की उडानों में, दूलारे छूट जाते है।
जो दिल में दर्द हो ग़र्दीश में जीवन आ गया हो तब,
कभी लगते थे वो सुंदर, नज़ारे छूट जाते है।
जो दौलत हाथ में हो तब, पतंगा बन के वो घूमे,
चली जाये जो दौलत तो वो प्यारे छूट जाते है।
मुसीबत में ही तेरे काम कोइ आये ना ‘रज़िया”
यकीनन दिल से अपने ही हमारे छूट जाते है।
पसंद करें लोड हो रहा है...
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Bahut khoobsurat blog hai,
Har ek words ki Synonims bhi bahut achhi hai,
Respected Sir,
I just note down this GAZAL,also bookmarked it for future.
I will be very happy when will share it with other “Ghazal Lovers” Friends.
Sasan Forest
Thank You Very Much!!
-Mausami Patel
from Canada
one of the best “GAJAL” in your litrature
निहायत ख़ूबसूरत रचना लिखी है आपने और अन्दाज़े-बयां, लफ़्ज़ों का चुनाव भी ख़ूबसूरत हैं।
महावीर शर्मा
गझल बहुत ही पसंद आए.
अभिनंदन.
aap ki har line bahut hi acchi hai aur es line le to dil ko chhu liya aap ese hi likhte rahe thanks.
मुसीबत में ही तेरे काम कोइ आये ना ‘रज़िया”
यकीनन दिल से अपने ही हमारे छूट जाते है।
बेहतरीन रचना
nice blog…. nice creation….!
keep it up…!
બહુત ખૂબ…બસ ઈસી તરહ લીખતે રહો.
very impressive
बड़ा दावा करें हम तैरने का जो समंदर से,
फ़सेँ जब हम भँवर में तो, किनारे छूट जाते है।
waah bahut hi khubsurat
aur aasha karti hun aapki pardes yatra achhi rahe,jaldi lautke aayiyega.
कई दिनो के बाद आए तो जी चाहा कि ब्लॉग जगत के कोने कोने तक घूमा जाए…
छूट जाने का मतलब हम लगाते है कि दरिया का पानी आगे ही आगे बढता है…. बदलाव का मतलब गति… हरकत नही तो ज़िन्दगी नहीं… छूटना तो नियति है…. एक दिन प्राण भी छूट जाएँगे …आपका लेखन असरदार है जो कुछ कहने को उकसाता है….
जिन्हें पैदा किया, पाला, बडे ही चाव से हमने।
जवानी की उडानों में, दूलारे छूट जाते है।
जो दौलत हाथ में हो तब, पतंगा बन के वो घूमे,
चली जाये जो दौलत तो वो प्यारे छूट जाते है।
bahut khoob
बड़ा दावा करें हम तैरने का जो समंदर से,
फ़सेँ जब हम भँवर में तो, किनारे छूट जाते है।
Bahut khub!
बेहतरीन रचना लिखी है आपने इसी पर एक शेर याद आ गया
बनी के चेहरे पे लाखों निशां होते हैं
बनी जब बिगड जाती है तो दुश्मन भी हजार होते हैं
बूरा जब वक़्त आता है, सहारे छूट जाते हैं।
जो हमदम बनते थे हरदम, वो सारे छूट जातेहै।
bahut sunder