ये शहर अब वों शहर नहीं,
न जाने किसकी नज़र लगी?(2)
यहॉ झिलमिलाते चिराग थे,
यहॉ टिमटिमाते सितारे थे।
यहॉ रोज़ दिन में ईद थी,
यहॉ रात एक दीवाली थी।
अब यहॉ अमास का आसमॉ।…. न जाने किसकी नज़र लगी?(2)
यहॉ ऊंचे मकान थे,
कभी इस में भी इन्सान थे।
यहॉ महेफिलॉ में थी रोशनी,
यहॉ बज़ती थी हर रागिनी।
अब यहॉ है खंडहर के नशॉ।…. न जाने किसकी नज़र लगी?(2)
यहॉ बागों में तो बहार थी।
यहॉ तितलीयॉ भी हज़ार थी।
ये सँवरता था दुल्हन तरहॉ,
ये महकता था गुलशन तरहॉ।
अब यहॉ लगा उज़डा समॉ।…. न ज़ाने किसकी नज़र लगी?(2)
रज़िया जी
today there was a curfew like situation here in my town Karimnagar in AP due to Riots after world cup Match
I borrowed your lines & put in Facebook photo & giving full source
here
સહરા કા નહી કીસી શહરકા સન્નાટા હું મૈં
સરસ કાવ્ય
RAZIYA ji
aapki kavitayen
padi
bahut umda hain…
BADHAI SWEEKAREN.
khubsurat shahr ko insaan ki hi nazar lagi hai,baut sundar prastuti badhai