उज़डा शहर


                                         

 

ये शहर अब वों शहर नहीं,

 न जाने किसकी नज़र लगी?(2)

      

यहॉ झिलमिलाते चिराग थे,

यहॉ टिमटिमाते सितारे थे।

यहॉ रोज़ दिन में ईद थी,

यहॉ रात एक दीवाली थी।

अब यहॉ अमास का आसमॉ।…. न जाने किसकी नज़र लगी?(2)

 

यहॉ ऊंचे मकान थे,

कभी इस में भी इन्सान थे।

यहॉ महेफिलॉ में थी रोशनी,

यहॉ बज़ती थी हर रागिनी।

अब यहॉ है खंडहर के नशॉ।…. न जाने किसकी नज़र लगी?(2)

 

यहॉ बागों में तो बहार थी।

यहॉ तितलीयॉ भी हज़ार थी।

ये सँवरता था दुल्हन तरहॉ,

ये महकता था गुलशन तरहॉ।

अब यहॉ लगा उज़डा समॉ।…. न ज़ाने किसकी नज़र लगी?(2)

 


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