क्यों कैसी रही? आज?
बड़ा ग़ुरूर था अपने आप पर!!
आज नर्म हो गये ना?
वक़्त कब और कैसे अपना रुख़ बदलेगा किसी को पता नहिं है।
और फ़िर अहंकार तो सबसे बूरी बात है।
सब कोइ कहता था कि आप से ही मैं हुं।
आप के बिना मेरा कोइ वज़ुद नहिं।
मैं हमेशाँ ख़ामोश रहा।
या कहो कि मेने भी स्वीकार कर लिया था कि आप के आगे मैं कुछ भी नहिं।
लोग कहते थे कि मेरा मिज़ाज ठंडा है और आप का गर्म।
ख़ेर मैं चुपचाप सुन लिया करता था क्योंकि आप की गर्मी से मैं भी तो डरता था।
भाइ में छोटा हुं ना!
पर आज मैं तुम पर हावी हो गया सिर्फ दो घंटों के लिये ही सही।
सारी दुनिया ने देख़ा कि आज तुम नर्म थे छुप गये थे एक गुनाहगार कि तरहाँ।
थोडी देर के लिये तो मुज़े बड़ा होने दो भैया!
पर एक बात कहुं मुज़े आप पर तरस आ रहा था जब लोग तमाशा देख रहे थे तब!
मैं आप पर हावी होना नहिं चाहता था।
पर मैं क्या करता क़ुदरत के आगे किसी का ना चला है ना चलेगा।
बूरा मत लगाना।
देख़ो आज आप पर आइ इस आपत्ति के लिये सभी दुआ प्रार्थना करते है।
लो मैने अपनी परछाई को आप पर से हटा लिया।
आपको छोटा दिखाना मुज़े अच्छा नहिं लगा।
क्योंकि मैं “चंदा” हुं और तुम “सुरज”।
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रज़िया जी
today there was a curfew like situation here in my town Karimnagar in AP due to Riots after world cup Match
I borrowed your lines & put in Facebook photo & giving full source
here
क्या खूब मानवीकरण किया है !
बहुत बढ़िया !
अच्छे लगे आपके विचार। शुक्रिया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Congrats Raziaji,
you have created nice poem in context of eclipse, wonderful.
While reading I was guessing for some other end but, when
I read the real end…I was spelbound! bravo
surya-grahan ko ekdam naye nazariye se pesh kiya aapne ! 🙂
bahot khoob