मैं चुराकर लाई हुं तेरी वो तस्वीर जो हमारे साथ तूने खींचवाई थी मेरे जाने पर।
में चुराकर लाई हुं तेरे हा थों के वो रुमाल जिससे तूं अपना चहेरा पोंछा करती थी।
मैं चुराकर लाई हुं वो तेरे कपडे जो तुं पहना करती थी।
मैं चुराकर लाई हुं पानी का वो प्याला, जो तु हम सब से अलग छूपाए रख़ती थी।
मैं चुराकर लाई हुं वो बिस्तर, जिस पर तूं सोया करती थी।
मैं चुराकर लाई हुं कुछ रुपये जिस पर तेरे पान ख़ाई उँगलीयों के नशाँ हैं।
मैं चुराकर लाई हुं तेरे सुफ़ेद बाल, जिससे मैं तेरी चोटी बनाया करती थी।
जी चाहता है उन सब चीज़ों को चुरा लाउं जिस जिस को तेरी उँगलीयों ने छुआ है।
हर दिवार, तेरे बोये हुए पौधे,तेरीतसबीह , तेरे सज़दे,तेरे ख़्वाब,तेरी दवाई, तेरी रज़ाई।
यहां तक की तेरी कलाई से उतारी गई वो, सुहागन चुडीयाँ, चुरा लाई हुं “माँ”।
घर आकर आईने के सामने अपने को तेरे कपडों में देख़ा तो,
मानों आईने के उस पार से तूं बोली, “बेटी कितनी यादोँ को समेटती रहोगी?
मैं तुझ में तो समाई हुई हुं।
“तुं ही तो मेरा वजुद है बेटी”
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Mashallah.
बहूत उमदा !
आज पहली बार आप का यह ब्लॉग देखा. इस पोस्ट को पढने के बाद आँखें भर आयी. आज मेरी मान के इन्तेकाल के ६ महीने हो गए. मान किसी कहते हैं, इस बात को वोह ज्यादा समझता है, जिसकी मान नहीं..
rajiya ji bahot hi badiya rachna hai aap ki maa maur beti ka jo pavan raista aap ne apni kavi ta me sajoya hai wo kabile tarif hai,bahot sundar
saras bhavokti
Raziajee,
Very touching and effective.
आपकी ये अभिव्यक्तिसे लगता है कि मा के लिये आपको कितना उन्चा पवित्र/पाक भाव है…काश मै भी यह चीजे पा सकता…बहोत ही मुबारकबाद..आप गा सकती है तो गाओ…रुकावटोको थोडी देर हटाओ..हम शुशनसीब है इक आदिलजी के बहोत ही करीब रहे उनका प्यार मीला..साथ मुशयरे किये…वतननी धूलना..यह गझल मैने उनके ७०वे सालगीरह पर खास तैयार कि थी यह स्टेज पर नृत्यके साथ उनके सामने पेश कि थी…तीन साल पहले उनको ७० शेर की गझल उनके लिये लिखि थी…उनके जाने से पहले मैने और एक गझल कंपोज करवाई गानी अभी बाकी है…वह भी उनको मेरी आखरी अंजलि के रुप में कभी पेश करुंगा…आप गाईये ऐसी मेरी शुभेच्चा है आपके साथ्…संसारमें सबसे जियादा मा तुम हो महान, इसिलिये अओ मा तुजे बारबार प्रणाम…यह मैने मधर्स डे पर लिखा था…
Superb. Liked very much.
Hi Razia,
I get your poem about our mother relationship after this year’s mother day.
But I would not want to miss it for next mothers day.
I bookmarked this poem,will keep it with me.
Its really effective.Really Nice work done by You.
Health Fitness Care Tips | Health Fitness Tips | Fitness Facts | Sasan Gir
-God Bless You.
अच्छी भावोभिव्यक्ति लिखी है
Thnx
This poem shows how close u are with your mother.
माँ की परिभाषा, गुण आदि शब्दों में तो असम्भव है लेकिन आपने इस कविता में माँ के प्रति उद्गार जिस सुंदरता से अभिव्यक्त किए हैं, वास्तव में प्रसंशनीय है, अद्भुत है।
घर आकर आईने के सामने अपने को तेरे कपडों में देख़ा तो,
मानों आईने के उस पार से तूं बोली, “बेटी कितनी यादों को समेटती रहोगी?
तुं ही तो मेरा वज़ूद है
बहुत सुंदर! बधाई।
महावीर शर्मा
Raziaji, bahot hi badhiya kavita likhi hai, ma-beti ke rishte ko dil se sanjoya hai, lagta hai aap apni ma se bahot pyar karti hai, keep it up, all the best
Raziaji, bahot hi badhiya kavita likhi hai, ma-beti ke rishte ko dil se sanjoya hai, lagta hai aap apni ma se bahot pyar karti hai
करुणा सभर रचना.
अच्छी भावोभिव्यक्ति
क्या बात है! बहुत बढ़िया
दीपक भारतदीप