क्यों देर हुई साजन तेरे यहाँ आने में?
क्या क्या न सहा हमने अपने को मनानेमें।
तुने तो हमें ज़ालिम क्या से क्या बना डाला?
अब कैसे यकीँ कर लें, हम तेरे बहाने में।
उम्मीदों के दीपक को हमने जो जलाया था।
तुने ये पहल कर दी, क्यों उसको बुज़ाने में।
बाज़ारों में बिकते है, हर मोल नये रिश्ते।
कुछ वक्त लगा हमको, ये दिल को बताने में।
थोडी सी वफ़ादारी गर हमको जो मिल जाती,
क्या कुछ भी नहिं बाक़ी अब तेरे ख़ज़ाने में।
अय ‘राज़’ उसे छोडो क्यों उसकी फ़िकर इतनी।
अब ख़ेर यहीं करलो, तुम उसको भुलाने में।
क्यों दौड रहा है किसी परछाइ के पीछे?
आगे तो ज़रा देख वो छाया तो नहीं है?
इतना तो न बन अँध, ओ नादान मुसाफिर !
क्या है ये हक़िकत या कि माया तो नहि है?
जिसको तु समज़ता है हमेंशा से ही अपना।
तेरा ही है या और-पराया तो नहिं है?
जुगनु की चमक देख के खिंचता चला है तु,
ये तुज़को दिखाने को सजाया तो नहिं है?
सहेरा में कहीं बहता है पानी अरे “रज़िया” !
धोख़ा है समज़ ये तो बहाया ही नहिं है?
ज़िंदगी
ज़िंदगी तूने बसाया अपनी ये आग़ोश में।
ज़िंदगी तूने समाया अपनी ये आग़ोश में।
मरसिये ग़म के कभी तो खुशीयों के गाने यहां।
”वाह” क्या क्या है सूनाया, अपनी ये आग़ोश में।
तूने जो चाहा, सराहा, अपनी मरज़ी से यहां।
झांसा देकर यूँ हंसाया अपनी ये आग़ोश में।
फ़ल्क़ पर ले जा बिठाया, या गिराया रेत पर।
तूने जी चाहा उठाया, अपनी ये आग़ोश में।
तेरी ही मरज़ी यहां चलती रही है ज़िंदगी।
तूने ही सब कुछ दिलाया, अपनी ये आग़ोश में।
हम बने माटी से है, हम पे हमारा जोर क्या?
तूने हमको है बनाया, अपनी ये आग़ोश में।
ज़िंदगी तू भी न जाने क्या लकीरें दे गई?
है बनाया और मिटाया, अपनी ही आग़ोश में।
”राज़” अब तो क्या शिकायत ज़िंदगी से है तुम्हें?
तुम ये गिनलो क्या है पाया, अपनी ये आग़ोश में?
वक़्त ने साथ छोड़ा हमारा जो था,
हाय तेरा, तड़पना मुझे याद है।
मुंह छिपाकर तेरा मेरी आगोश में,
हाय कैसा बिलख़ना मुझे याद है।…हॉ मुझे याद है।
प्यार की वादीओ में गुज़ारे जो पल,
कैसे दिल से ओ साथी भूला पायेंगे?
जिन लकीरों पे कस्मे जो खाइ थीं कल,
आज हम वो लकीरें मिटा पायेंगे?
उन रक़ीबों के ज़ुल्मों को मेरे सनम,
हाय तेरा वो सहेना मुझे याद है। हॉ मुझे याद है।
ख्वाब हमने सज़ाये थे मिलकर सनम।
एक घरौंदा सुनहरा बनायेंगे हम।
साथ तेरा रहे, साथ मेरा रहे।
हमने ख़ाईं थीं इक-दूसरे की कसम|
उन वफ़ाओं की राहों में मेरे सनम,
आज भी सर ज़ुकाना मुझे याद है। हॉ मुझे याद है.
क्या करें मेरे महबूब अय जानेमन!
हम भी वक़तों के हाथों से मजबूर हैं।
ना नसीबा ही अपना हमें साथ दे।
ईसलीये ही तो हम आज यूं दूर है।
हिज्र के वक़्त में ओ मेरे हमसुख़न।
आज तेरा सिसकना मुझे याद है। हॉ मुझे याद है.
हाय चलती हवाओं उसे थाम लो।
ठंडी-ठंडी फ़िज़ाओ मेरा नाम लो।
सर से उस के जो पल्लू बिख़र जायेगा,
आहें भर के ये माशुक़ मर जायेगा।
याद जब जब करेंगे हमें “राज़” तब।
हाय मेरा तड़पना मुझे याद है।
पीठ फिराये भविष्य से।
हार चुका था अपनी शक्ति,
अपनी ही कमजोरी से ।
देखा मैंने एक मकड़ी को,
बार बार यूँ गिरते हुए।
अपने बुने हुए जाल पे फिर भी,
कंई बार जो सँभलते हुए।
गिरती रही, सँभलती रही पर..
बुनती रही वो अपना जाल।
पुरा बन चुकने पर मकडी,
जैसे हो गइ हो निहाल।
एक छोटी मक़्डी ने मुझ में,
भर दी हिंमत कंई अपार।
कुछ करने की ठान ली मैंने,
अब ना रहा मैं यूँ लाचार।
मक़डी ने सिखलाया मुज़को,
हरदम कोशिश करते रहना।
”राज़” कितनी बाधाएं आयें,
हरदम कदम बढाये रहना।
देख़ो लोगों मेरे जाने का है पैग़ाम आया..(2)
ख़ुदा के घर से है ये ख़त, मेरे नाम आया….देख़ो लोगो…
जिसकी ख़वाहिश में ता-जिन्दगी तरसते रहे।
वो तो ना आये मगर मौत का ये जाम आया। ख़ुदा के घर…..
ज़िंदगी में हम चमकते रहे तारॉ की तरहॉ ।
रात जब ढल गइ, छुपने का ये मक़ाम आया। ख़ुदा के घर…..
राह तकते रहे-ता जिन्दगी दिदार में हम |
ना ख़बर आइ ना उनका कोइ सलाम आया । ख़ुदा के घर…..
चल चुके दूर तलक मंज़िलॉ की खोज में हम।
अब बहोत थक गये रुकने का ये मक़ाम आया। ख़ुदा के घर…..
हम मुहब्बत् में ज़माने को कुछ युं भूल गये ।
हम है दिवाने, ज़माने का ये इल्ज़ाम आया। ख़ुदा के घर…..
जिसने छोडा था ज़माने में युं तन्हा “रज़िया”
क़ब्र तक छोड़ने वो क़ाफ़िला तमाम आया। ख़ुदा के घर…..
पीछे मुड के हमने जब देख़ा ,गुज़रा वो ज़माना याद आया।
बीती एक कहानी याद आइ, बीता एक फ़साना याद आया।…..पीछे.
सितारों को छूने की चाहत में, हम शम्मे मुहब्बत भूल गये।(2)
जब शम्मा जली एक कोने में, हम को परवाना याद आया।…..पीछे.
शीशे के महल में रहकर हम, तो हँसना-हँसाना भूल गये।(2)
पीपल की ठंडी छाँव तले वो हॅसना-हॅसाना याद आया।…..पीछे.
दौलत ही नहीं ज़ीने के लिये, रिश्ते भी ज़रूरी होते है।(2)
दौलत ना रही जब हाथों में, रिश्तों का खज़ाना याद आया।…..पीछे.
शहरॉ की ज़गमग-ज़गमग में, हम गीत वफ़ा के भूल गये।(2)
सागर की लहरॉ पे हमने, गाया था तराना याद आया।…..पीछे.
चलते ही रहे चलते ही रहे, मंजिल का पता मालूम न था।(2)
वतन की वो भीगी मिट्टी का अपना वो ठिकाना याद आया।…..पीछे.
अपनॉ ने हमें कमज़ोर किया, बाबुल वो हमारे याद आये।(2)
कमज़ोर वो ऑखॉ से उन को वो अपना रुलाना याद आया।…..पीछे.
अय “राज़” कलम तुं रोक यहीं, वरना हम भी रो देंगे।(2)
तेरी ये गज़ल में हमको भी कोइ वक़्त पुराना याद आया।…..पीछे.
तलाश
सफर में ख़ो गई मंज़िल,उसे तलाश करो।.
किनारे छूटा है साहिल, उसे तलाश करो।.
था अपना साया भी इस वक़्त साथ छोड़ गया।.
कहॉ वो हो गया ओझल उसे तलाश करो।
ना ही ज़ख़म,ना तो है खून फिर भी मार गया।
कहॉ छुपा है वो कातिल, उसे तलाश करो।
भूला चला है वक़्त जिन्दगी के लम्हों को।
मगर धड़कता है क्यों दिल? उसे तलाश करो।
ये कारवॉ है तलाशी का, लो तलाश करें।
हो जायॆं हम भी तो शामिल, उसे तलाश करो।
वो बोले हम है गुनाहगार उनके साये के।
कहां पे रह गये ग़ाफिल उसे तलाश करो।
लुटा दिया था हरेक वक़्त उनके साये में।
मगर नहिं है क्यों क़ाबिल, उसे तलाश करो।
समझ रहे थे ज़माने में हम भी कामिल हैं।
हमारा खयाल था बातिल उसे तलाश करो।
अय “राज” खूब तलाशी में जुट गये तुम भी।
बताओ क्या हुआ हॉसिल? ,उसे तलाश करो।
देख़ो आई रुत मस्तानी..(2)
आसमान से बरसा पानी.. देख़ो आई रुत मस्तानी..(2)
पत्ते पेड़ हुए हरियाले।
पानी-पानी नदियां नाले।
धरती देख़ो हो गई धानी। देख़ो आई रुत मस्तानी..(2)
मेंढक ने जब शोर मचाया।
मुन्ना बाहर दौड़ के आया।
हंसके बोली ग़ुडीया रानी। देख़ो आई रुत मस्तानी..(2)
बिज़ली चमकी बादल गरज़े।
रिमझिम रिमझिम बरख़ा बरसे।
आंधी आई एक तुफ़ानी। देख़ो आई रुत मस्तानी..(2)
कोयल की कुउ,कुउ,कुउ सुनकर।
पपीहे की थर,थर,थर भरकर।
”राज़”हो गई है दीवानी। देख़ो आई रुत मस्तानी..(2)
मन में उठ्ठा एक सवाल,
आसमॉ गर होता लाल।
मछलियॉ आकाश में उड़ती !
पंछी सब धरती पर चलते !
ईंन्सानों के पंख जो होते !
प्राणी गाते सूर और ताल ।…मन में….
मुकुट होता फकीर के सर पे !
और राजा के भिक्षा पात्र !
फ़कीर-साईं होते महाराजा !
महाराजा होते कंगाल !…मन में
सोने की जो खेती होती !
अमृत की जो बारिश होती !
सूरज में जो ठंडक होती !
चंदा बरसाता अगनज्वाल !…मन में !
खून अगर होता बेरंगी !
पानी होता रंगबेरंगी !
महीने कईं हफ़्ते बन जाते !
घंटे बन जाते कईं साल !… मन में !
बंधन
ये बंधन टूटेना ।(2)
चाहे कोई बाधा आये, चाहे आये तूफ़ॉ ।
ये बंधन टूटेना ।(2)
साथ कभी छूटेना…ये बंधन टूटेना ।
ये बंधन टूटेना ।(2)
मेरी चाहत इतनी ग़हरी, जीतना सागर ग़हेरा।
मेरी चाहत इतनी ऊंची, जितना नभ ये ऊँचा।
हाथ कभी छूटेना…ये बंधन टूटेना ।
तूँ मेरी साँसों में समाया, तू मेरी आहों में।
दिल की धड़कन नाम पुकारें, तेरा दिन-रातों में।
सांस मेरी छूटेना…ये बंधन टूटेना ।
तुजको चाहा, तुजको पूजा बनके मीरां मैने।
ढूंढा तूजको हर एक मोड पे बनके राधा मैने।
प्यार मेरा छूटेना… ये बंधन टूटेना ।