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रिश्तों का मोल
क्यों देर हुई साजन तेरे यहाँ आने में?
क्या क्या न सहा हमने अपने को मनानेमें।
तुने तो हमें ज़ालिम क्या से क्या बना डाला?
अब कैसे यकीँ कर लें, हम तेरे बहाने में।
उम्मीदों के दीपक को हमने जो जलाया था।
तुने ये पहल कर दी, क्यों उसको बुज़ाने में।
बाज़ारों में बिकते है, हर मोल नये रिश्ते।
कुछ वक्त लगा हमको, ये दिल को बताने में।
थोडी सी वफ़ादारी गर हमको जो मिल जाती,
क्या कुछ भी नहिं बाक़ी अब तेरे ख़ज़ाने में।
अय ‘राज़’ उसे छोडो क्यों उसकी फ़िकर इतनी।
अब ख़ेर यहीं करलो, तुम उसको भुलाने में।
मुस्कुराता तू चलाजा
आदमी है, आदमी से मिल मिलाता तू चलाजा।
गीत कोइ प्यार के बस गुनगुनाता तू चलाजा।
गर तुझे अँधियारा राहों में मिले तो याद रख़,
हर जगह दीपक उजाले के जलाता तू चलाजा।
जो तुझे चूभ जायें काँटे, राह में हो बेखबर,
अपने हाथों से हटा कर, गुल बिछाता तू चलाजा।
सामने तेरे ख़डी है जिंदगानी देख ले,
बीती यादों को सदा दिल से मिटाता तू चलाजा।
”राज़” हम आये हैं दुनिया में ही ज़ीने के लिये।
हँस के जी ले प्यार से और मुस्कुराता तू चलाजा।
तलाश
तलाश
सफर में ख़ो गई मंज़िल,उसे तलाश करो।.
किनारे छूटा है साहिल, उसे तलाश करो।.
था अपना साया भी इस वक़्त साथ छोड़ गया।.
कहॉ वो हो गया ओझल उसे तलाश करो।
ना ही ज़ख़म,ना तो है खून फिर भी मार गया।
कहॉ छुपा है वो कातिल, उसे तलाश करो।
भूला चला है वक़्त जिन्दगी के लम्हों को।
मगर धड़कता है क्यों दिल? उसे तलाश करो।
ये कारवॉ है तलाशी का, लो तलाश करें।
हो जायॆं हम भी तो शामिल, उसे तलाश करो।
वो बोले हम है गुनाहगार उनके साये के।
कहां पे रह गये ग़ाफिल उसे तलाश करो।
लुटा दिया था हरेक वक़्त उनके साये में।
मगर नहिं है क्यों क़ाबिल, उसे तलाश करो।
समझ रहे थे ज़माने में हम भी कामिल हैं।
हमारा खयाल था बातिल उसे तलाश करो।
अय “राज” खूब तलाशी में जुट गये तुम भी।
बताओ क्या हुआ हॉसिल? ,उसे तलाश करो।