मेरी ख़ामोशीओं की गुंज सदा देती है।
तू सुने या ना सुने तुज़को दुआ देती है।
मैंने पलकों में छुपा रख्खे थे आँसू अपने।(2)
रोकना चाहा मगर फ़िर भी बहा देती है।
मैंने पाला था बड़े नाज़-मुहब्बत से तुझे(2)
क्या ख़बर जिंदगी ये उसकी सज़ा देती है।
तूँ ज़माने की फ़िज़ाओं में कहीं गुम हो चला(2)
तेरे अहसास की खुशबू ये हवा देती है।
तूँ कहीं भी रहे”अय लाल मेरे” दूरी पर(2)
दिल की आहट ही मुझे तेरा पता देती है।
MAUT KI AAGOSH ME JAB THAK K SO JATI HAI MAA
TAB KAHNI JAA K RAZA THODA SUKU PATI HAI MAA,
RAZA SIRSAWI
मैंने पलकों में छुपा रख्खे थे आँसू अपने।(2)
रोकना चाहा मगर फ़िर भी बहा देती है।
bahut khoob
रजिया जी,
आपका यह ब्लाग मैंने पहली बार देखा तो बहुत खुशी हुई। वाकई बहुत प्रभावपूर्ण लिखती हैं और मेरी आपको शुभकामानाएं हैं कि आप ऐसे ही लिखती रहें।
दीपक भारतदीप
bhut badhiya. ati uttam.
आज स्वतंत्रता दिवस आयिए इस बेला पर पूरे देश को आवाज़ लगाये की ग़रीबी और भुखमरी और नहीं रहने देंगे! आज़ादी के मायने नहीं बदलने देंगे! छोटे बड़ों से मार्गदर्शन लेंगे!
आपका ई-मेल मिला ख़ुशी हुई, माँ को समर्पित यह ग़ज़ल बहुत सुन्दर है!
मैंने पलकों में छुपा रख्खे थे आँसू अपने।
रोकना चाहा मगर फ़िर भी बहा देती है।
Beautiful!
“Maa” janne wali,
“Maa” Palan hari,
“Maa” Mamta wari,
“Maa” Manaane wali,
“Maa” Sahlane wali,
“Maa” Lori Sunanewali,
“Maa” Aansu Pochne Wali,
“Maa” Aap Bhukhi phir bhi Bhukhmitane wali,
“Maa” dukh mitane wali,
“Maa” Phir Bhi hai Tu Kitni Dhukhiyari
“Amma, Ammi, mamma, mummy, mata, maa”
har jaat me tu hai “MAA”, “MAA tu to ‘MA-HA(I)N,
“MAA TUJHE SALAAM”
Maa Razia tujhe salaam,
Rajesh,