हज़ारों नाम वाले


 

   दाता तेरे हज़ारों है नाम…(2)

कोइ पुकारे तुज़े कहेकर रहिम,

 और कोइ कहे तुज़े राम।…दाता(2)

 

क़ुदरत पर है तेरा बसेरा,

सारे जग पर तेरा पहेरा,

तेरा ‘राज़’बड़ा ही गहेरा,

तेरे ईशारे होता सवेरा,

तेरे ईशारे हिती शाम।…दाता(2)

 

ऑंधी में तुं दीप जलाये,

पथ्थर से पानी तुं बहाये,

बिन देखे को राह दिख़ाये,

विष को भी अमृत तु बनाये,

तेरी कृपा हो घनश्याम।…दाता(2)

 

 क़ुदरत के हर-सु में बसा तु,

पत्तों में पौन्धों में बसा तु,

नदीया और सागर में बसा तु,

दीन-दु:ख़ी के घर में बसा तु,

फ़िर क्यों में ढुंढुं चारों धाम।…दाता(2)

 

 ये धरती ये अंबर प्यारे,

चंदा-सुरज और ये तारे,

पतज़ड हो या चाहे बहारें,

दुनिया के सारे ये नज़ारे,

 देख़ुं मैं ले के तेरा नाम।…दाता(2)

 

 


4 टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही बढिया रचना प्रस्तुत की है।बहुत भक्तिरस में डूब कर लिखा है।

    ये धरती ये अंबर प्यारे,

    चंदा-सुरज और ये तारे,

    पतज़ड हो या चाहे बहारें,

    दुनिया के सारे ये नज़ारे,

    देख़ुं मैं ले के तेरा नाम।…दाता

  2. बहुत सुंदर,सार्थक,शाश्वत है आपकी कविता…. किसी की शेर याद आ गयी..”बेखुदी में हम तो तेरा दर समझ के झुक गये…,अब खुदा जाने वह काबा था या बुतखाना….” समर्पित रहिये… आपके अगले रचना की प्रतीक्षा में…


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