कारवॉ


        कारवॉ

 

 

मेरे पंख मुज़से न छीनलो,

 मुझे आसमॉ की तलाश है।

मैं हवा हूँ मुझको न बॉधलो ,

मुझे ये समॉ की तलाश है।

 

 

मुझे मालोज़र की ज़रुर क्या?

मुझे तख़्तो-ताज न चाहिये !

जो जगह पे मुज़को सुक़ुं मिले,

मुझे वो जहाँ की तलाश है।

 

 

मैं तो फ़ुल हूं एक बाग़ का।

मुझे शाख़ पे बस छोड दो।

में खिला अभी-अभी तो हूं।

मुझे ग़ुलसीतॉ की तलाश है।

 

 

न हो भेद भाषा या धर्म के।

न हो ऊंच-नीच या करम के।

जो समझ सके मेरे शब्द को।

वही हम-ज़बॉ की तलाश है।

 

जो अमन का हो, जो हो चैन का।

जहॉ राग_द्वेष,द्रुणा न हो।

पैगाम दे हमें प्यार का ।

वही कारवॉ की तलाश है।

 

 

 

 

 


5 टिप्पणियाँ

  1. वाह. बहोत उमदा सोच, बहोत अच्छी पंक्तियां !

    मैं, बस इन्सान हू, कोई वेश न दो
    है मेरा अपना ढंग, कोई रंग न दो
    न कोई जाती, न कोई धर्म, न देश
    सत्य के सिवा कोई उपदेश न दो

    उन्मुक्त गगन का वासी हू, उड़ने दो
    आजाद हूं मैं, मेरी पंख को फैलने दो
    सपनों का सुलतान हू, देर तक सोने दो
    ना दिलमें कोई मर्यादा, प्यार करने दो …….जनक देसाई

  2. झे मालोज़र की ज़रुर क्या?
    मुझे तख़्तो-ताज न चाहिये !
    जो जगह पे मुज़को सुक़ुं मिले,
    मुझे वो जहाँ की तलाश है।

    जो अमन का हो, जो हो चैन का।
    जहॉ राग_द्वेष,द्रुणा न हो।
    पैगाम दे हमें प्यार का ।
    वही कारवॉ की तलाश है।

    aaj ke zyadaatar ham-jazb afraad ki yahi soch hai … !! bahot achhhi tarah se utaare hai aapne jazbaat …


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